पथरी को नजरंदाज न करें, हो सकता है घातक

पथरी को नजरंदाज न करें, हो सकता है घातक

सेहतराग टीम

यदि कभी किसी को शरीर में पथरी की शिकायत हुई हो, चाहे वो किडनी में हो या गॉल ब्‍लाडर में, तो इस बीमारी की गंभीरता को वो जरूर जानता है। इसके बावजूद कई बार लोग इसके इलाज में लापरवाही बरतने लगते हैं। यह स्थिति अच्‍छी नहीं मानी जाती क्‍योंकि किडनी के पथरी के कारण अगर पेशाब रुक जाए तो शरीर में घातक सेप्टीसीमिया संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है। पथरी या स्‍टोन को लेकर लोगों में कई तरह की गलतफहमियां भी होती हैं। एक गलतफहमी तो यही होती है कि पथरी कोई भी हो होम्‍योपैथी की दवा से ठीक हो जाती है। गॉल ब्‍लाडर की पथरी पर होम्‍योपैथी की दवा का प्रभावी असर अभी तक तो सामने नहीं आया है।

क्‍या कहते हैं विशेषज्ञ

जाने-माने यूरोलॉजिस्‍ट और दिल्‍ली के सरिता विहार स्थित अपोलो अस्‍पताल के पथरी रोग विशेषज्ञ डॉक्‍टर अंशुमान अग्रवाल के अनुसार लोगों को यह समझना चाहिए कि एलोपैथी में और सिर्फ एलोपैथी में गुर्दे (किडनी) एवं पित्त की थैली (गॉल ब्लैडर) में पथरी का शत प्रतिशत इलाज मौजूद है, लेकिन समय पर एवं सही इलाज नहीं करवाना खतरनाक साबित हो सकता है। गुर्दे की पथरी के इलाज में देरी से मरीज को गुर्दे से हाथ धोना पड़ सकता है। पथरी के कारण गुर्दे में पेशाब के रूक जाने से संक्रमण का बड़ा खतरा पैदा हो सकता है। इस संक्रमण के खून के जरिये पूरे शरीर में पहुंचने से सेप्टीसीमिया जैसी घातक एवं जानलेवा स्थिति पैदा हो जाती है। उनका कहना है कि होम्योपैथी, योगासन एवं आयुर्वेद के चक्कर में पड़कर गुर्दा गंवाने वाले एवं सेप्टीसीमिया से ग्रस्त मरीज उनके पास इलाज के लिए आते रहते हैं।

पेशाब से पथरी निकलना प्राकृतिक प्रक्रिया

डॉक्‍टर अग्रवाल कहते हैं कि पेशाब के रास्ते 5-6 मिलीमीटर से कम की छोटी-छोटी पथरी का निकलना एवं प्राकृतिक प्रक्रिया है। कभी-कभी एक से डेढ़ सेंटीमीटर की पथरी तक भी पेशाब के साथ ही निकल जाती है लेकिन इसमें भयानक दर्द होता है। लेकिन इस पथरी निकलने का श्रेय होम्‍योपैथी या अन्य वैकिल्पक इलाज की विधि को मिल जाता है। पथरी के अपने आप निकलने की इसी प्राकृतिक प्रक्रिया के कारण भ्रम की स्थिति पैदा होती है कि आयुर्वेद या होम्योपैथिक दवा और योग से पथरी टूटकर अपने आप निकल जाती है।

बड़ी पथरी के लिए क्‍या इलाज

असल समस्या गुर्दे या पित्त की थैली में बड़े पत्थर के होने से होती है जिसके लिए आधुनिक लिथोटिप्‍सी अथवा दूरबीन से सर्जरी की जाती है। आयुर्वेद या अन्य वैकल्पिक विधाओं में बडी पथरी का इलाज कतई संभव नहीं है। लिथोटिप्‍सी एक ऐसी विधि है जिसमें शॉक वेव्स को बिना कोई सर्जरी किए अंदर भेजा जाता है। यह विधि डेढ सेंटीमीटर तक की पथरी में काम आती है। इससे बडी पथरी होने पर दूरबीन की सर्जरी की जरूरत होती है। यूरिक एसिड से बनने वाली पथरी को गलाने वाली दवा से बाहर निकला जाता है। पित्त की थैली में पथरी होने पर उसे काटकर बाहर निकालने के अलावा और कोई चारा नहीं होता। पित्त की थैली में पथरी को छोड देने से कुछ लोगों को तो कुछ नहीं होता लेकिन कुछ को पीलिया या शरीर के लिए इंसुलिन पैदा करने वाले अंग पैंक्रियाज में सक्रमण हो जाता है। चिकनाई वाली चीजें खाते ही दर्द शुरू हो जाता है। ऐसे 2 से 3 प्रतिशत लोगों को पित्त की थैली की पथरी के कारण कैंसर भी हो जाता है।

गॉल ब्‍लाडर की पथरी निकलना मुश्किल

देश के जाने माने आयुर्वेदाचार्य पद्मश्री देवेंद्र त्रिगुणा के अनुसार आयुर्वेद में छोटी-छोटी पथरी का बेहतर इलाज हो सकता है और गुर्दे की छोटी पथरी आयुर्वेदिक दवाओं से बाहर निकाली जा सकती है। यदि पित्त की थैली में पथरी हो तो आयुर्वेदिक दवाओं से निकालना मुश्किल होता है। पथरी होने पर पुनर्नवा, गोखरू, बेल पत्थर, चंद्रप्रभावटी आदि दवाएं दी जाती है मगर बिना आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह के इन दवाओं को नहीं लिया जाना चाहिए। बेहतर यह है कि पथरी के मरीज पानी अधिक मात्रा में लें और मूली का रस और जौ का पानी भी पर्याप्त मात्रा में सेवन करें। टमाटर, पालक, दही ज्यादा मात्रा में दूध आदि के सेवन से परहेज करना चाहिए।

 

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